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Friday, August 12, 2011

तूफान के साथ उड़ने वाले पत्ते भी सहज ही आसमान चूमने लगते हैं

मित्रो ! इन दिनों नवनिमार्ण का प्रयोजन भगवान् की प्रेरणा और उनके मागर्दशर्न में चल रहा है उसे एक तीव्र सरिता-प्रवाह मानकर चलना चाहिए, जिसकी धारा का आश्रय पकड़ लेने  के बाद कोई कहीं-से कहीं पहुँच सकता है तूफान के साथ उड़ने वाले पत्ते  भी सहज ही आसमान चूमने लगते हैं ऊँचे पेड़ का आसरा लेकर दुबली बेल  भी उतनी ही ऊँची चढ़ जाती है, जितना कि वह पेड़ होता है 'नवनिमार्ण' महाकाल  की योजना एवं प्रेरणा है उसका विस्तार तो उतना होना ही है, जितना कि उसके सूत्र संचालक ने निधार्रित कर रखा है विश्वास को जमा लेने पर अन्य सारी समस्याएँ  सरल हो जाती हैं नवनिमार्ण  का कार्य ऐसा नहीं है, जिसके लिए कि घर-गृहस्थी, काम धंधा छोड़कर पूरा समय साधु-बाबाजियों की तरह लगाना पड़े यह कार्य ऐसा है, जिसके लिए दो  घंटे  नित्य  लगाते रहने भर से असाधारण प्रगति संभव है लगन हो तो कुछ-घंटे ही परमाथर्-प्रयोजन में लगा देने भर से इतना अधिक परिणाम सामने उपस्थित हो सकता है, जिसे आदरणीय, अनुकरणीय और अभिनंदनीय कहा जा सके
प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया-पृष्ठ-२६

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