मित्रो ! इन दिनों नवनिमार्ण का प्रयोजन भगवान् की प्रेरणा और उनके मागर्दशर्न में चल रहा है । उसे एक तीव्र सरिता-प्रवाह मानकर चलना चाहिए, जिसकी धारा का आश्रय पकड़ लेने के बाद कोई कहीं-से कहीं पहुँच सकता है । तूफान के साथ उड़ने वाले पत्ते भी सहज ही आसमान चूमने लगते हैं । ऊँचे पेड़ का आसरा लेकर दुबली बेल भी उतनी ही ऊँची चढ़ जाती है, जितना कि वह पेड़ होता है । 'नवनिमार्ण' महाकाल की योजना एवं प्रेरणा है । उसका विस्तार तो उतना होना ही है, जितना कि उसके सूत्र संचालक ने निधार्रित कर रखा है । विश्वास को जमा लेने पर अन्य सारी समस्याएँ सरल हो जाती हैं । नवनिमार्ण का कार्य ऐसा नहीं है, जिसके लिए कि घर-गृहस्थी, काम धंधा छोड़कर पूरा समय साधु-बाबाजियों की तरह लगाना पड़े । यह कार्य ऐसा है, जिसके लिए दो घंटे नित्य लगाते रहने भर से असाधारण प्रगति संभव है । लगन हो तो कुछ-घंटे ही परमाथर्-प्रयोजन में लगा देने भर से इतना अधिक परिणाम सामने आ उपस्थित हो सकता है, जिसे आदरणीय, अनुकरणीय और अभिनंदनीय कहा जा सके ।
प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया-पृष्ठ-२६
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