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Sunday, August 21, 2011

सवर्त्र पात्रता के हिसाब से मिलता है


मित्रो ! सवर्त्र पात्रता के हिसाब से मिलता है बतर्न आपके पास है तो उसी बतर्न के हिसाब से आप जो चीज लेना चाहें तो ले भी सकते हैं खुले में रखें तो पानी उसके भीतर भरा रह सकता है दूध देने वाले के पास जाएँगे तो जितना बड़ा बतर्न है उतना ही ज्यादा दूध देगा ज्यादा लेंगे तो वह फैल जाएगा और फिर वह आपके किसी काम नहीं आएगा इसलिए पात्रता को अध्यात्म में सबसे ज्यादा महत्त्व दिया गया है जो आदमी अध्यात्म का प्रयोग करते हैं, वे अपने व्यक्तिगत जीवन में अपनी पात्रता का विकास कर रहे हैं कि नहीं कर रहे हैं-यह बात बहुत जरूरी है आदमी का व्यक्तित्व अगर सही नहीं है तो यह सब बातें गलत हैं कपड़े को रंगने से पहले धोना होगा धोएँ नहीं और मैले कपड़े पर रंग लगाना चाहें तो रंग कैसे चढ़ेगा? रंग आएगा ही नहीं, गलत-सलत हो जाएगा इसी प्रकार से अगर आप धातुओं को गरम नहीं करेंगे तो उससे जेवर नहीं बना सकते हार नहीं बना सकते क्यों? इसलिए कि आपने सोने को गरम नहीं किया है गरम करने से आप इन्कार करते हैं फिर बताइए जेवर किस तरीके से बनेगा? इसलिए गरम करना आवश्यक है जो आदमी साधना के बारे में दिलचस्पी रखते हैं या उससे कुछ लाभ उठाना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहला जो कदम उठाना पड़ेगा, वह है अपने व्यक्तित्व का परिष्कार
गुरुवर की धरोहर--५७

Saturday, August 20, 2011

भगवान का अवतार जब कभी भी दुनिया में हुआ है, तब भक्तजनों को अपना सौभाग्य चमकाने का मौका मिल गया है


मित्रो ! इन दिनों दुनिया दो तरीके से बदल रही है इसे कौन बदल रहा है? बीसवीं सदी का अवतार, जिसे हम प्रज्ञावतार कहते हैं आदमी की अक्ल बहुत ही वाहियात है इस अक्ल ने सारी दुनिया को गुत्थियों में धकेल दिया है जितनी ज्यादा अक्ल बढ़ी है, संसार में उतनी ही ज्यादा हैरानी बढ़ी है आप कॉलेजों में, विश्वविद्यालयों में चले जाइए पहले वहाँ अराजक तत्त्व, अवांछनीय तत्त्व जन्म ले रहे हैं? आपको बदलता हुआ जमाना दिखाई नहीं पड़ता, आजकल बहुत हेर-फेर हो रहा है इस अक्ल ने दुनिया को हैरान कर दिया है इस अक्ल की धुलाई करने के लिए एक नई अक्ल पैदा हो रही है,जिसका नाम है-'महाप्रज्ञा'   चौबीसवाँ अवतार प्रज्ञा के रूप में जन्म ले रहा है आपको तो नहीं दिखाई पड़ता होगा शायद, पर आप हमारी आँखों में आँखें डालकर देखें हमारी आँखे बहुत पैनी हैं और बहुत दूर की देखने वाली हैं हमारी आँखों में टैलिस्कोप लगे हुए हंै आप आइए, जरा हमारी आँखों मेंआँखें डालिए, फिर देखिए क्या हो रहा है? जमाना बेहद तरीके से बदल रहा है यह कौन बदल रहा है? भगवान बदल रहा है भगवान का अवतार जब कभी भी दुनिया में हुआ है, तब भक्तजनों को अपना सौभाग्य चमकाने का मौका मिल गया है
पूज्यवर की अमृतवाणी--.२१

Friday, August 19, 2011

मित्रो ! स्मरण रहे-युग निमार्ण का संकल्प महाकाल का है


मित्रो ! स्मरण रहे-युग निमार्ण का संकल्प महाकाल का है, केवल जानकारी पहुँचाने और आवश्यक व्यवस्था जुटाने का काम शांतिकुंज के संचालकों ने अपने  कंधों पर धारण किया है, मौलिक श्रेय तो उसी महाशक्ति का है, जिसने मनुष्य जैसे प्राणी की सीमित शक्ति से किसी भी प्रकार बन पड़ने वाले कायोर्ं को करने की प्रेरणा दी है और काम में जुट जाने के लिए आगे धकेल कर बाध्य किया है वही इस प्रयोजन को पूर्ण भी करेगी, क्योंकि युगपरिवतर्न का नियोजन भी उसी का है
शांतिकुंज के संचालक प्रायः अस्सी वर्ष के होने जा रहे हैं उनका शरीर भी मनुष्य-जीवन  की मयार्दा के अनुरूप अपने अंतिम चरण में  है, फिर नियंता ने उनके जिम्मे एक और भी बड़ा तथा महात्त्वपूर्ण कार्य पहले से  ही सुपुर्द कर दिया है, जो कि स्थूल शरीर से नहीं, सूक्ष्म शरीर से ही बन पड़ेगा वतर्मान शरीर को छोड़ना और नए सूक्ष्म शरीर में प्रवेश करके प्रचंड शक्ति का परिचय देना ऐसा कार्य है, जो सशक्त  आत्मा के द्वारा ही बन पड़ सकता है इतने पर भी किसी को यह आश्शंका नहीं करनी चाहिए कि निधार्रित 'युगसंधि महापुरश्चरण' में कोई बाधा पड़ेगी महाकाल ने ही  यह संकल्प लिया है और वही इसे  समग्र रूप में पूरा कराएगा, फिर  उज्ज्वल भविष्य के निमार्ण हेतु अगले दस वर्षों तक शांतिकुंज  के वतर्मान  संचालन की भी आवश्यक व्यवस्था बनाने और तारतम्य बिठाते रहने के लिए भी तो वचनबद्ध हैं
प्रज्ञावतार की विस्तार प्रक्रिया पृष्ठ-