युग निर्माण योजना का आरंभ परोपदेश से नहीं, वरन् अपने को बदलने-सुधारने से शुरु होगा । यदि हमारा मन बात मानने के लिए तैयार नहीं, तो दूसरा कौन सुनेगा? जीभ की नोंक से निकले हुए लच्छेदार प्रवचन दूसरों के कानों को प्रिय लग सकते हैं, सब उनकी प्रशंसा भी कर सकते है, पर प्रभाव तो आत्मा का आत्मा पर पड़ता है । आत्म-सुधार, आत्म-निमार्ण और आत्म-विकास हमारा ध्येय हो ।
अखण्ड ज्योति-१९६२, अप्रैल
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