चित्त या मन हमारी मान्यताओं, पूर्वाग्रहों, विश्वास, संस्कारों, शंकाओं, प्रतिक्रियाओं एवं दुराग्रहों का समुच्चय है । ये सारे पक्ष हमें व्यावहारिक जीवन में कष्ट में डालते रहते हैं । यह मनुष्य का वास्तविक 'स्व' या 'सेल्फ' नहीं है । इसलिए यह जरूरी है कि मनुष्य अपनी इस कारा से अपने को मुक्त करे-इन बंधनों से स्वयं को निकाल बाहर करे । रोजमर्रा का मन आत्मिक प्रगति में सहायक नहीं हो सकता । अपनी समस्त समस्याओं का समाधान ढूँढ़ना हो तो मन को ऊँची स्थिति में ले जाना होगा । वास्तविक अध्यात्म यही है जिसमें मन को अज्ञात उच्चतम स्थिति की ओर मोड़ना होता है ।
(अखण्ड ज्योति-अचेतन में मानवी गरिमा का उद्गम स्रोत ः १९८२, जन० ३६)
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