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Thursday, August 11, 2011

आप देवता बनते चले जाएँगे

मित्रो ! भगीरथ एक राजकुमार था उसके राजपाट थे, परन्तु उसने आदमी की खुशहाली के लिए अपना स्वाथर्, लोभ त्याग दिया भगवान की भक्ति आती है तो करुणा के रूप में आती है, दया के रूप में आती है
भगीरथ के हृदय में भी माता का उदय हुआ था उसके सीने में, कलेजे में करुणा बही होगी यह भावना की गंगा थी, जो विशाल होती चली गयी भगीरथ ने गंगा को मजबूर कर दिया कि आप स्वगर् में बैठी हैं तथा धरती के लोग एक-एक बूँद पानी के लिए मजबूर हो रहे हैं, आपको शमर् आनी चाहिए स्वगर् की गंगा जो महलों में रहती थी, आराम का जीवन जीती थी, वह भगीरथ की करुणा, त्याग एवं परमाथर् की भावना को देखकर मजबूर हो गई इस धरती पर आने के लिये गंगा ने सारे समाज को धन्य कर दिया हम किसी औरत की जयंती मनाने नहीं आये हैं उदारता की, इन्सानियत की जयंती मनाने आये हैं गायत्री को हम माता कहते हैं, गंगा को भी हम माता कहते हैं माता कोई देवी या औरत का नाम नहीं है माता एक आदशर् का नाम है, सिद्धान्त का नाम है
मित्रो ! अगले दिनों लोगों को खाने से ज्यादा मजा खिलाने में आयेगा अकेले खाने वालों को अगले दिनों लोग यह कहेंगे कि आपको शमर् नहीं आती है, आप खाते चले जाते हैं, खाते चले जाते हैं आपको शमर् आनी चाहिए पड़ोसी तथा पीड़ित-पतित एवं भूखे लोग आपको दिखलाई नहीं पड़ते हैं केवल अपना पेट, अपनी बीबी, अपने बच्चे ही दिखलाई पड़ते हैं आपके भीतर से जब गायत्री माता उदय होंगी तो आपको चमकाकर रख देंगी आपके विचारों में परिवतर्न कर देंगी आपको सारा परिवार, समाज देश दिखलाई पड़ेगा आप देवता बनते चले जाएँगे
पूज्यवर की अमृतवाणी-पृष्ठ-.७३

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