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Sunday, June 5, 2011

स्वार्थ और परमार्थ का अन्तर हर वस्तु के स्तर को गिराता और उठाता है

तानसेन सम्राट् अकबर के दरबारी गायक थे एकबार अकबर तानसेन के गुरु दरिदास जजी से मिले और उनके गायन को सुनकर मुग्ध हो गये अकबर ने तानसेन से कहा-यों तो गाते तो आप भी अच्छा है, पर आपके गुरु के गायन में जो रस है, उसकी प्रशंसा नहीं हो सकती तानसेन ने कहा-'मेरे गुरु भगवान् को प्रसन्न करने के लिए गाते हैं और मैं आपको प्रसन्न करने के लिए स्वार्थ और परमार्थ का अन्तर हर वस्तु के स्तर को गिराता और उठाता है तो गायन पर भी वही सिद्धान्त क्यों लागू होगा?'
(अखण्ड ज्योति-१९६३, नवम्बर २६)

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