तानसेन सम्राट् अकबर के दरबारी गायक थे । एकबार अकबर तानसेन के गुरु दरिदास जजी से मिले और उनके गायन को सुनकर मुग्ध हो गये । अकबर ने तानसेन से कहा-यों तो गाते तो आप भी अच्छा है, पर आपके गुरु के गायन में जो रस है, उसकी प्रशंसा नहीं हो सकती । तानसेन ने कहा-'मेरे गुरु भगवान् को प्रसन्न करने के लिए गाते हैं और मैं आपको प्रसन्न करने के लिए । स्वार्थ और परमार्थ का अन्तर हर वस्तु के स्तर को गिराता और उठाता है तो गायन पर भी वही सिद्धान्त क्यों लागू न होगा?'
(अखण्ड ज्योति-१९६३, नवम्बर २६)
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