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Monday, August 15, 2011

वासना और तृष्णा की खाई इतनी चौड़ी और गहरी है कि उसे पाटने में कुबेर की संपदा और इंद्र की समथर्ता भी कम पड़ती है


मित्रो ! वासना और तृष्णा की खाई इतनी चौड़ी और गहरी है कि उसे पाटने में कुबेर की संपदा और इंद्र की समथर्ता भी कम पड़ती है तृष्णा की रेगिस्तानी जलन को बुझाने के लिए साधन सामग्री का थोड़ा-सा पानी, कुछ काम नहीं करता अतृप्ति जहाँ की तहाँ बनी  रहती है थोड़े से उपभोग तो उस ललक को और भी तेजी से आग में ईधन पड़ने की तरह भड़का देते हैं
मन के छुपे रुस्तम का तो कहना ही क्या? वह यक्ष राक्षस की तरह अदृश्य तो रहता है, पर कौतुक-कौतूहल इतने बनाता-दिखाता रहता है कि उस व्यामोह में फँसा मनुष्य दिग्भ्रांत बनजारे की तरह, इधर-उधर मारे-मारे फिरने में ही अपनी समूची चिंतन क्षमता गँवा-गुमा दे तृष्णा तो समुद्र की चौड़ाई और गहराई से भी बढ़कर है उसे तो भस्मासुर, वृत्रासुर, महिषासुर जैसे महादैत्य भी पूरी कर सके, फिर बेचारे मनुष्य की तो विसात ही क्या है, जो उसे शांत करके संतोष का आधार प्राप्त कर सके
सतयुग की वापसी--पृष्ठ-

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