मित्रो ! सवर्त्र पात्रता के हिसाब से मिलता है । बतर्न आपके पास है तो उसी बतर्न के हिसाब से आप जो चीज लेना चाहें तो ले भी सकते हैं । खुले में रखें तो पानी उसके भीतर भरा रह सकता है । दूध देने वाले के पास जाएँगे तो जितना बड़ा बतर्न है उतना ही ज्यादा दूध देगा । ज्यादा लेंगे तो वह फैल जाएगा और फिर वह आपके किसी काम नहीं आएगा । इसलिए पात्रता को अध्यात्म में सबसे ज्यादा महत्त्व दिया गया है । जो आदमी अध्यात्म का प्रयोग करते हैं, वे अपने व्यक्तिगत जीवन में अपनी पात्रता का विकास कर रहे हैं कि नहीं कर रहे हैं-यह बात बहुत जरूरी है । आदमी का व्यक्तित्व अगर सही नहीं है तो यह सब बातें गलत हैं । कपड़े को रंगने से पहले धोना होगा । धोएँ नहीं और मैले कपड़े पर रंग लगाना चाहें तो रंग कैसे चढ़ेगा? रंग आएगा ही नहीं, गलत-सलत हो जाएगा । इसी प्रकार से अगर आप धातुओं को गरम नहीं करेंगे तो उससे जेवर नहीं बना सकते । हार नहीं बना सकते । क्यों? इसलिए कि आपने सोने को गरम नहीं किया है । गरम करने से आप इन्कार करते हैं । फिर बताइए जेवर किस तरीके से बनेगा? इसलिए गरम करना आवश्यक है । जो आदमी साधना के बारे में दिलचस्पी रखते हैं या उससे कुछ लाभ उठाना चाहते हैं, उन्हें सबसे पहला जो कदम उठाना पड़ेगा, वह है अपने व्यक्तित्व का परिष्कार ।
गुरुवर की धरोहर-१-५७
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