''महाकाल का युग निर्माण प्रत्यावतर्न अब द्रुतवेग से गतिशील होने जा रहा है । उसके इस अभियान में प्रबुद्ध आत्माओं को महत्वपूर्ण भूमिका प्रस्तुत करनी होगी । जिनकी जड़ता और अनुदारता न छूट सके उन्हें समय से टकराकर चूर-चूर होने की तैयारी करनी होगी । बीच की कोई स्थिति नहीं । जैसा अब तक चलता रहा है । आगे भी वैसा ही ढरार् चलता रह सकता है ऐसा किसी को भी नहीं सोचना चाहिए । इधर या उधर अपना एक स्थान नियत कर लेना चाहिए । 'अखण्ड-ज्योति' परिवार में बहुत प्रयत्नपूवक संस्कारवान प्रबुद्ध आत्माएँ मूल्यवान मणियों की तरह एकत्रित कर एक माला में सँजोई हैं । उनके जीवनोद्देश्य पूरा करने की भूमिका में प्रवेश करने का ठीक यही समय है । इस अवसर को न चूका जाना चाहिए, क्योंकि यह चूक अन्ततः बहुत महँगी पड़ेगी ।''
वाङमय-६६-७.४५
No comments:
Post a Comment