आज मनुष्य को जीना कहाँ आता है? जीना भी एक कला है । सब आदमी खाते हैं, पीते हैं, सोते हैं और मौत के मुँह में चले जाते हैं, किन्तु जीना नहीं जानते । जीना बड़ी शानदार चीज है । इसको संजीवनी विद्या कहते हैं-जीवन जीने की कला । यहाँ हम अपने विश्वविद्यालय में, शांतिकंुज में जीवन जीने की कला सिखाते हैं और यह सिखाते हैं कि आज के गए-बीते जमाने में आप अपनी नाव पार करने के साथ-साथ सैकड़ों आदमियों को बिठाकर पार किस तरह से लगा पाते हैं?
- वाङमय-६८-पृष्ठ-१.४०
- वाङमय-६८-पृष्ठ-१.४१
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