हम कौन हैं?
''लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं । कोई लेखक, वक्ता, विद्वान और नेता समझते हैं, पर किसने हमारा अन्तःकरण खोलकर पढ़ा, समझा है? कोई उसे देख सका होता, तो उसे मानवीय व्यथा-वेदना की अनुभूतियों की करुण कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इन हड्डियों के ढाँचे में बैठी-बिलखती दिखाई पड़ती ।''
''लोग हमें संत, सिद्ध, ज्ञानी मानते हैं । कोई लेखक, वक्ता, विद्वान और नेता समझते हैं, पर किसने हमारा अन्तःकरण खोलकर पढ़ा, समझा है? कोई उसे देख सका होता, तो उसे मानवीय व्यथा-वेदना की अनुभूतियों की करुण कराह से हाहाकार करती एक उद्विग्न आत्मा भर इन हड्डियों के ढाँचे में बैठी-बिलखती दिखाई पड़ती ।''
हमारी इच्छा-
अपने अनन्य आत्मीय प्रज्ञा-परिजनों में से प्रत्येक के नाम हमारी यही वसीयत और विरासत है कि हमारे जीवन से कुछ सीखें । कदमों की यथार्थता खोजें, सफलता जाँचें और जिससे जितना बन पड़े अनुकरण का, अनुगमन का प्रयास करें । यह नफे का सौदा है, घाटे का नहीं ।
हमारा काम-
दो प्रश्न आपके मस्तिष्क में उठते होंगे । एक प्रश्न यह कि आपको बनना क्या है और बनाना क्या है? करना क्या है और कराना क्या है? इन दोनों प्रश्नों के उत्तर में एक ही जवाब है कि हमको अपनी दृष्टि का परिशोधन करना है । आप एक ही बात ध्यान में रखिए कि हमारी दृष्टि परिष्कृत होनी चाहिए । हमारा चिन्तन उच्चस्तरीय होना चाहिए । हमारे मनों में सिद्धांतों के लिए, आदश्र्ााें के लिए ऊँची निष्ठा होनी चाहिए । इसलिए दृष्टि को ऊँचा करना, चिन्तन को ऊँचा करना, आस्थाओं-निष्ठाओं को ऊँचा करना, हमारा पहला काम है । असल में आदमी की शक्ति इसी में है । अध्यात्म और कोई चीज नहीं है, मात्र दृष्टि के परिष्कार का नाम है ।
यही हमारा मुख्य काम है और आखिरी काम भी है । इसी के लिए हम तरह-तरह के क्रिया-कृत्य करते हैं । उसमें जप भी शामिल है, भजन भी शामिल है, अनुष्ठान भ्ाी शामिल है । ये जप, भजन, अनुष्ठान एक कृत्य हैं । अगर आपने इनको उच्चस्तरीय दृष्टिकोण बनाने के लिए किया है, तो मैं आपको बधाई देता हूँ और ये कहता हूँ कि भगवान करे ऐसा भाव हरेक के मन में हो ।
आपकी जिम्मेदारी-
हमें अपना सारा साहस समेटकर तृष्णा और वासना के कीचड़ से बाहर निकलना होगा और वाचालता और विडम्बना से नहीं, अपने कृत्यों से अपनी उत्कृष्टता का प्रमाण देना होगा । हमारा उदाहरण ही दूसरे अनेक लोगों को अनुकरण का साहस प्रदान करेगा ।
वाणी और लेखनी के माध्यम से लोगों को किसी बात की, अध्यात्मवाद की भी जानकारी कराई जा सकती है । इससे अधिक भाषणों का कोई उपयोग नहीं । दूसरों को यदि कुछ सिखाना हो, तो उसका एक मात्र तरीका अपना उदाहरण प्रस्तुत करना है । यही ठोस, वास्तविक और प्रभावशाली पद्धति है ।
पं. श्रीराम शर्मा आचार्य
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