उपासना की निष्ठा को जीवन में हमने उसी तरीके से घोलकर रखा है जैसे एक पतिव्रता स्त्री अपने पति के प्रति निष्ठावान रहती है और कहती है-'सपनेहु आन पुरुष जग नाही ।' आपके पूजा की चौकी पर तो कितने बैठे हुए हैं । ऐसी निष्ठा होती है कोई? एक से श्रद्धा नहीं बनेगी क्या? मित्रो! हमारे भीतर श्रद्धा है । हमने एक पल्ला पकड़ लिया है और सारे जीवन भर उसी का पल्ला पकड़े रहेंगे । हमारा प्रियतम कितना अच्छा है । उससे अधिक रूपवान, सौंदर्यवान, दयालु और संपत्तिवान और कोई हो नहीं सकता । हमारा वही सब कुछ है, वही हमारा भगवान् है ।
- परम पूज्य गुरुदेव
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