मानव जीवन को स्त्रष्टा का सर्वोत्तम उपहार कहा गया है । इस निर्माण में परमात्मा ने अपना सारा कला-कौशल सँजो दिया है । प्राणियों में इसके समकक्ष और कोई नहीं है । उसे विशिष्ट काया,मन्ा, बुद्धि, प्रतिभा सुविधा सभी कुछ उपलब्ध है । विकास क्रम में भी वह समस्त जीवधारियों से आगे है । इतना सब कुछ होने पर भी अभी मनुष्य का विकास अधूरा रह गया है । उसके पास जो बुद्धि-वैभव है, वह जीवन को सुव्यवस्थित रखने, चेतना के उच्चतम स्थिति तक पहुँचाने के लिए पर्याप्त नहीं है । सामान्य बुद्धि के रहते वह सृष्टि के मुकुटमणि के शीर्षस्थ पद से सम्मानित नहीं हो सकता । मन के जिस धरातल पर वह आज खड़ा है उससे भी अधिक उच्चस्तरीय चेतना की परतें उसके अन्तराल में विद्यमान हैं जिन्हें अब तक कुरेदा नहीं गया है । पूर्णता की प्राप्ति के लिए उसे मन के उच्चतर धरातल-अतिमानसिक चेतना की ओर छलाँग लगानी होगी जिस पर पहुँचकर मनुष्य सर्वज्ञ बन जाता है । मानव से अतिमानव, महामानव, पुरुष से पुरुषोत्तम बनना, यही उसके विकास की अगली मंजिल है ।
- परम पूज्य गुरुदेव
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