पूज्यवर ने एक आदर्श आचार संहिता के नाते प्रत्येक परिजन से (शांतिकुंज में) प्रवेश के समय एक ही बात कही थी कि- ''तुम सब यह मानकर चलना कि यह तुम्हारी ओढ़ी हुई गरीबी है । तुम्हारी इस गरीबी में ही तुम्हारी शान है । कभी किसी से भीख मत माँगना एवं जो भी कोई तुम्हें व्यक्तिगत रूप से दे, उसे अपना न मानकर माताजी को दे देना ताकि वह समष्टिगत रूप से बँट सके । जिस दिन तुम्हें दीन-हीन याचक माना जाने लगेगा, तुम पर भेंट तो न्यौछावर होगी, घर जाकर भी तुम्हें तुम्हारे वाक्-कौशल से प्रभावित हो कोई न कोई कुछ दे जायेगा, पर बेटा उसी दिन से तुम्हारा ब्रह्मतेज समाप्त होने लगेगा । माताजी के दिए पैसे से तुम चने खाकर संतोष कर लेना, पर दूसरों के दिये बादाम मत खाना । जिस दिन इस स्तर का ब्राह्मत्व तुम्हारे अंदर उतर गया, मानो एक लोकसेवी का सही मानों में उदय हो गया ।''
वांङमय-१-८.३७
wonderful post ji..Jai Mahakal
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