तुम सब हमारी भुजा बन जाओ, हमारे अंग बन जाओ, यह हमारे मन की बात है । अब तुम पर निर्भर है कि तुम कितना हमारे बनते हो? समर्पण का अर्थ है दो का अस्तित्व मिट कर एक हो जाना । तुम भी अपना अस्तित्व मिटाकर हमारे साथ मिला दो व अपनी क्षुद्र महत्त्वाकांक्षाओं को विलीन कर दो । जिसका अहं जिंदा है, वह वेश्या है । जिसका अहं मिट गया वह पवित्र है । देखना है कि हमारी भुजा, आँख, मस्तिष्क बनने के लिए तुम कितना अपने अहं को गला पाते हो?
परम पूज्य गुरुदेव
श्रावणी पर्व-१९८८ कार्यकर्ता संदेशाा
श्रावणी पर्व-१९८८ कार्यकर्ता संदेशाा
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