संत की यह निशानियाँ हैं कि उसका चरित्र ऊँचा होना चाहिए । भक्त का चरित्र ऊँचा न हुआ तब? तब सभी कथा-कीर्तन, भजन-पूजन, जप-तप, अन्ाुष्ठान बेकार हैं । नहीं साहब, हम तो अखंड कीर्तन करते हैं, जागरण करते हैं, जप-तप करते हैं । आप यह सब करते हैं तो आपको मुबारक, लेकिन पहले आप सिर्फ एक जवाब दीजिए कि आप अपनी पात्रता को विकसित करते हैं कि नहीं? भगवान सिर्फ दो ही बातें देखते रहते हैं और वे आपकी मानसिक पवित्रता और चरित्रनिष्ठा । अपनी पूजा तो अपने मन को धोने का एक तरीका है ।
गुरुवर की धरोहर-भाग-२-३३
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