यदि तुम्हारा मन धर्म मार्ग की ओर प्रवृत्त न होता हो, सांसारिक लालचों की ओर बार-बार इच्छा होती हो तो समझो कि यह कार्य शंकाशील तर्क का है और वह तुम्हें नास्तिकता की ओर पकड़कर घसीटे लिये जा रही है । ऐसी दशा में तुम तकर् से तकर् का निवारण नहीं कर सकते । आग से आग नहीं बुझ सकती । अपना पथ प्रदशर्क चुनो, आप्त पुरुषों के पदचिह्नों की ओर देखो । ईश्वरीय ज्ञान की धमर् पुस्तकों से मदद मांगो । महापुरुष जिस मागर् पर गये हों उसका अनुसरण करो । सोई हुई श्रद्धा को जाग्रत् करो । वह तुम्हें परम तत्त्व के उस दरवाजे पर ले जाकर खड़ा कर देगी जहाँसे प्रकाश दिखाई पड़ता है और उस प्रकाश के सहारे आत्मा अपने आप अपना मागर् खोज लेता है ।‘
(अखण्ड ज्योति-१९४०, अक्टूबर ७)
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