एक साधक अपनी श्रद्धा के बल पर धातु और पत्थर से बनी प्रतिमाओं से चमत्कारी प्रतिक्रिया उत्पन्न कर लेता है, दूसरा अपनी अनास्था के कारण जीवन्त देव मानवों के अति समीप रहने पर भी कोई लाभ नहीं ले पाता । एकलव्य ने मिट्टी से बनी द्रोणाचार्य प्रतिमा से वह अनुदान प्राप्त कर लिया था जो पाण्डव सचमुच के द्रोणाचार्य से भी प्राप्त नहीं कर सके थे । मीरा के 'गिरधर गोपाल' और राम कृष्ण परमहंस की 'काली' में जो चमत्कारी शक्ति थी वह उनके श्रद्धारोपण से ही उत्पन्न हुई थी और उन्हीं के लिए फलप्रद सिद्ध होती रही । यन्त्र-तन्त्रों की सिद्धि में विधि-विधानों की इतनी भूमिका नहीं होती, जितनी साधक के श्रद्धा, विश्वास की ।
वाङमय-२२-१.८९
No comments:
Post a Comment