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Wednesday, June 15, 2011

पुरश्चरण


सिंह जब शिकार पर आक्रमण करता है, तो एक क्षण ठहरकर हमला करता है । धनुष पर बाण को चढ़ाकर जब छोड़ा जाता है तो यत्किंचित् रुककर तब बाण छोड़ा जाता है । बन्दूक का घोड़ा दबाने से पहले जरा-सी देर शरीर को साध कर स्थिर कर लिया जाता है, ताकि निशाना ठीक बैठे । इसी प्रकार अभीष्ट उद्देश्य की प्राप्ति के लिये पर्याप्त मात्रा में आत्मिक बल एकत्रित करने के लिये कुछ समय आन्तरिक शक्तियों को फुलाया और विकसित किया जाता है, इसी प्रक्रिया का नाम 'पुरश्चरण ' है ।

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