विचार आपसे कहते हैं-हमें मन के जेलखाने में ही घोटकर मत मारिए । वरन् शरीर के कार्यों द्वारा जगत् में आने दीजिए । मनुष्य उत्तम लेखक, योग्य वक्ता, उच्च कलाविद् एवं वह जो भी चाहे सरलतापूवर्क बन सकता है, लेकिन एक शर्त है कि वह अपने शुभ संकल्पों को क्रियाशील कर दे । उन्हें दैनिक जीवन में कर दिखाए । जो कुछ सोचता, विचारता है, उसे परिश्रम द्वारा, प्रयत्न द्वारा, अपनी सामर्थ्य द्वारा साक्ष्य का रूप प्रदान करे । शुद्ध विचारों की उपयोगिता तब प्रकट होगी, जब अंतरंग के चित्रों को शरीर के कार्यो द्वारा क्रियान्वित करने का प्रयत्न किया जाएगा ।
वाङमय-१, पृष्ठ-१०.३०
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