Pages

Thursday, July 21, 2011

समय के साथ बदलना ही बुद्धिमानी है ।

अपने मस्तिष्क की बनावट उसी ढाँचे में ढालनी चाहिए जो समय के अनुरूप है । अपने क्रियाकलाप को उस ढर्रे पर छोड़ना चाहिए, जिसकी पटरी अगले समय के साथ ठीक तरह बैठ सके । यदि ऐसा परिवतर्न अपने भीतर किया जा सका तो समझना चाहिए कि बुद्धिमत्ता और दूरदशिर्ता की एक बहुत बड़ी परीक्षा पास कर ली । अगला समय जैसा आ रहा है उसके प्रतिकूल स्तर की अपनी आकांक्षाएँ, गतिविधियाँ एवं योजनाएँ चलती रहीं तो आकस्मिक परिवतर्न का इतना बड़ा झटका लगेगा कि सम्भालना मुश्किल हो जाएगा । अप्रत्याशित परिस्थितियाँ जो बिल्कुल ही वर्तमान  ढाँचे से विपरीत हों-जब सामने आ खड़ी होती हैं तब पश्चाताप और दुःख बहुत होता है । जब समयानुसार बदले हुए लोग चिर प्रतीक्षित सुअवसर आने का मोद मना रहे होते हैं तब अढ़ियल लोग हक्का-बक्का होकर शोक-संताप में डूबे खड़े होते हैं । अच्छा हो इस विपन्नता से बचा जा सके ।
वाङमय-६६-७.४५

No comments:

Post a Comment