उपासना का अर्थ होता है-पास बैठना । परमात्मा के पास बैठने से ही ईश्वर उपासना हो सकती है । साधारण वस्तुएँ तथा प्राणी अपनी विशेषताओं की छाप दूसरों पर छोड़ते हैं तो परमात्मा के समीप बैठने वालों पर उन दैवी विशेषताओं का प्रभाव क्यों नहीं पड़ेगा?
किसी व्यक्ति की उपासना सच्ची है अथवा झूठी है, इसकी एक ही परीक्षा है कि साधक की अन्तरात्मा में संतोष, प्रफुल्लता, आश्शा, विश्वास और सद्भावना का कितनी मात्रा में अवतरण हुआ । यदि यह गुण नहीं आये हैं और हीन वृत्तियाँ घेरे हुए हैं तो समझना चाहिये कि वह व्यक्ति चाहे जितनी पूजा-पाठ क्यों न करता हो, उपासना से अभी बहुत दूर है ।
किसी व्यक्ति की उपासना सच्ची है अथवा झूठी है, इसकी एक ही परीक्षा है कि साधक की अन्तरात्मा में संतोष, प्रफुल्लता, आश्शा, विश्वास और सद्भावना का कितनी मात्रा में अवतरण हुआ । यदि यह गुण नहीं आये हैं और हीन वृत्तियाँ घेरे हुए हैं तो समझना चाहिये कि वह व्यक्ति चाहे जितनी पूजा-पाठ क्यों न करता हो, उपासना से अभी बहुत दूर है ।
- परम पूज्य गुरुदेव
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