इस संसार का यह विचित्र नियम है कि बाजार में वस्तुओं की कीमत दूसरे लोग निर्धारित करते हैं, पर मनुष्य अपना मूल्यांकन स्वयं करता है और वह अपना जितना मूल्यांकन करता है उससे अधिक सफलता उसे कदापित नहीं मिल पाती । प्रत्येक व्यक्ति जो आगे बढ़ने की आकांक्षा रखते हैं, उन्हें यह मानकर चलना चाहिए कि परमात्मा ने उसे मनुष्य के रूप में इस पृथ्वी पर भेजते समय उसकी चेतना में समस्त सम्भावनाओं के बीज डाल दिये हैं । इतना ही नहीं, उसके अस्तित्व में सभी सम्भावनाओं के बीज डालने के साथ-साथ उनके अंकुरित होने की क्षमताएँ भी भर दी है । लेकिन प्रायः देखने में यह आता है कि अधिकांश व्यक्ति अपने प्रति ही अविश्वास से भरे होते हैं तथा उन क्षमताओं और सम्भावनाओं के बीजों को विकसित तथा अंकुरित करने की चेष्टा तो दूर रही, उनके सम्बन्ध में विचार तक नहीं करना चाहते ।
(अखण्ड ज्योति-१९८१, जनवरी-१३)
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