''गुरुदेव! जब हम आपके सामने नहीं होते, कहीं दूर कार्यक्षेत्र में काम कर रहे होते हैं अथवा अपने-अपने घरों में सो रहे होते हैं, तब भी आपको हमारा ध्यान रहता है?'' उन्होंने आँख में आँसू लाकर कहा था-''बेटा! जब तुम सोते हो, मेरा या गायत्री माता का ध्यान करते हो तब मैं तुम्हारी चेतना में प्रवेश कर तुम्हें सुधारता हूँ । तुम्हारी चेतना के कण-कण को बदलता हूँ । शरीर से न रहने पर तो यह काम और अधिक व्यापक क्षेत्र में करूँगा, क्योंकि मुझे एक करोड़ साधक तैयार करने हैं । मुझे अपने एक-एक शिष्य व जाग्रतात्मा का ध्यान है ।'' यह आश्वासन है इस दैवीसत्ता का । यदि हम साधना द्वारा उनसे जुड़े रहें, उनकी दैवीसत्ता को सूर्यमण्डल के मध्य स्थितमान ध्यान करें तो पायेंगे कि पवित्रता सतत बढ़ रही है व शक्ति की निरंतर वर्षा हो रही है । जब तक अंतिम आदमी उनसे जुड़ा मुक्त नहीं हो जाता, उनकी सत्ता सक्रिय है-युगऋषि के रूप में । कृतसंकल्प है हमें बदलने को तथा सतयुग लाने को । फिर मन में कैसा असमंजस, कैसा उहापोह?
- वाङमय भाग-१-८.४२
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