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Tuesday, June 21, 2011

मेरी बात पर विश्वास रखना कि भारतीय संस्कृति का ही अलख अब चारों दिशाओं में गूँजने जा रहा है


शिशिर ऋतु में पूज्य गुरुदेव अपने कक्ष से बाहर धूप में बैठते थे । लेखन-शोध से सम्बन्धित कार्यकर्ताओं को वहीं बुलाकर चर्चा करते थे । वहीं र्निदेश देते-देते एकाएक गंभीर हो उठे, बोले- ''लड़को! कहीं तुम्हें अविश्वास तो नहीं होता, मेरे कथन पर कि सतयुग वास्तव में आनेवाला है । मैंने जो कुछ भी पिछले दिनों लिखा है, महाकाल के आदेश से लिखा है । मेरी नब्बे प्रतिशत से अधिक चेतना अब सूक्ष्म जगत में सक्रिय है व ऋषिसत्ताओं के साथ नये युग का सरंजाम जुटा रही है । तुम देखना कि मेरे कहे गये ये वाक्य, लिखी हुई एक-एक पंक्ति बम का धमाका करेंगी व देखते-देखते विचार क्रांति का स्वरूप तुम्हें दस-पन्द्रह वर्ष में ही दिखाई देने लगेगा । विश्व का सारा ढाँचा बदल जायेगा । मेरी बात पर विश्वास रखना कि भारतीय संस्कृति का ही अलख अब चारों दिशाओं में गूँजने जा रहा है ।''
- वांङमय-१-८.४३


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