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Saturday, June 18, 2011

इच्छा की प्रबलता ही कार्य की सिद्धि है ।


तू सूर्य और चन्द्र को अपने पास नहीं उतार सका इसका कारण उनकी दूरी नहीं, तेरी दूरी की भावना है तू संसार को बदल नहीं पाया इसका कारण संसार की अपरिवर्तनशीलता नहीं, वरन् तेरे प्रयासों की शिथिलता है जब तू यह कहता है कि मैं अपने में परिवर्तन नहीं कर सकता, तो इसे स्थिति और विवशता कहकर टाल, साफ-साफ अपनी कायरता और अकर्मण्यता कह; क्योंकि इच्छा की प्रबलता ही कार्य की सिद्धि है
 (महाप्रभु कौटिल्य -जीवन और सिद्धान्त १९८०, नवम्बर )

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