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Thursday, July 14, 2011

नवनीत को इस प्रकार समाविष्ट करना होगा कि मलीनता का निराकरण तथा शालीनता का अनुभव संभव बन सके ।

मात्र अक्षर दोहरा लेने से तो स्कूली बच्चे प्रथम कक्षा में ही बने रहते हैं । उन्हें प्रशिक्षित बनने के लिए वर्णमाला, गिनती जैसे प्रथम चरणों से आगे बढ़ना पड़ता हैं । इसी  प्रकार गायत्री मंत्र के साथ जो विभूतियाँ  अविच्छिन्न रूप से आबद्घ हैं, मात्र थोड़े से अक्षरों को याद कर लेने या दोहरा देने से उसमें वर्णित विशेषताओं को उपलब्ध करना नहीं माना जा सकता । उनमें सन्निहित तत्वज्ञान पर भी गहरी दृष्टि डालनी होगी । इतना ही नहीं, उसे हृदयंगम भी करना होगा और जीवनचर्या  में नवनीत को इस प्रकार समाविष्ट करना होगा कि मलीनता का निराकरण तथा शालीनता का अनुभव संभव बन सके ।
आद्य शक्ति की समर्थ साधना पृष्ठ-२

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